विनर / मृदुला सिंह
ख़ुद में सिमटी हुई-सी तुम
क्लास की अगली बेंच पर बैठने से भी
कैसी सकुचाती थी!
नए तरीक़े से मांग भी नहीं काढती थी
न तराशती थीं भवें अपनी
जिसपर दिल वाला छल्ला लगा हो
ऐसा कोई नया बैग भी नहीं था तुम्हारे पास
इतनी दूर से पैदल आती हो
देखो, सलवार की किनारियाँ कितनी मैली हैं!
लेकिन मुझे बहुत अच्छा लगा था
जब तुमने उस दिन कहा था
कि तुम रोपा लगा रही थी
इसलिए नहीं ले सकी थीं वक़्त पर दाखिला
कितनी बेफ़िक्र थी तुम्हारी आवाज़!
छमाही में जब टॉप किया था तुमने
तो जी चाहा था गले से लगा लूँ तुमको
स्पोर्ट्स डे पर जीत लिए थे सारे मेडल
और एक लोकल रिपोर्टर के पूछने पर बताया था
मवेशियों के पीछे दौड़ते फिरने की आदत ने
आज मुझे विनर बनाया है
उस रोज़ कॉरिडोर में क्लास टीचर से
जब मांगा था पैड तुमने
तो मुझे मत छूना कहते हुए
उसने दूर से पैड पकड़ाते हुए कहा था
हो सके तो छुट्टी ले लो, यह भी ताक़ीद की थी
तुमने सवालिया लहजे में देखा था-
आप भी तो एक औरत हैं
क्या आपको नहीं होता?
तुम्हारी अना ने
चेता दिया था उनको
कि अब तुम शिक्षित हो रही हो
भर रही हो रंग
खेतों की तरह अपनी ज़िंदगी में भी