विनाशकारी / मेटिन जेन्गिज़ / मणि मोहन
अपने प्रारब्ध में
मैं एक कल्पनातीत, पर गहरा ज़ख्म हूँ
ख़ून से लथपथ हो जाता है मेरा चेहरा जैसे ही मैं उसे रुमाल से पोंछता हूँ
जैसे ही मेरी आवाज़ बिखरती है हवा में पतझड़ की तरह
मेरे शब्द घुल-मिल जाते हैं परागकण से
दुनिया को धोखा देने के लिए
शब्द तो कीमियागिरी है
अपने अधूरे गीतों के प्रति
वे तो पल - पल बदलता घातक फोड़ा या गाँठ हैं
वे तो सड़ान्ध मारता पानी हैं
जिसकी मित्रता मेरे व्यापक ब्रहमाण्ड से है
जो मेरी किताबों में नहीं समा सकता :
नीलक पुष्प के धब्बे की तरह
वे रात में अपने निशान छोड़ जाते हैं
तो एक नए सबब के साथ सुबह हो रही है
बिखरी हुई निडर पत्तियों के शोर से भरी
और मैं अपने ज़ख़्म पर जारी रखता हूँ ज़हर डालना
एक विनाशकारी संगीत शृंखला में बदल रहे हैं वाक्य
इस सूर्य को गिर जाना चाहिए मेरे सिर पर
ठण्ड में बदल गया है मेरा पसीना
मेरे विनाशकारी गुस्से के इस चुनौतीपूर्ण बिन्दु पर
नहीं , मेरी जान , तुम्हारे लिए नहीं गाऊँगा मैं यह गीत
जिससे बाहर हो चुकी है सुगन्ध
और जड़ें तब्दील हो चुकी हैं दंगो में
बहुत पहले से लगा चुका हूँ अपनी मुहर
कर चुका हूँ अपने हस्ताक्षर
जीवन के सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्से पर
और हर सूर्योदय पर अपने दाँत साफ़ किए
जीवन को निष्ठुरता से रगड़ा अपनी देह पर
— आओ, उठाओ उस कंघी को जिसे कविताएँ पसन्द हैं
और अपने बालों में कंघी करते हुए दिन की शुरुआत करो ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन