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विपर्यय / निज़ार क़ब्बानी
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जबसे पड़ा हूँ मैं प्रेम में
बदल-सा गया है
ऊपर वाले का साम्राज्य ।
संध्या शयन करती है
मेरे कोट के भीतर
और पश्चिम दिशा से उदित होता है सूर्य ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह