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विरथा संसार / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
तोरा बिना विरथा संसार लागै छै।
जीवन केॅ नैया बिना पतवार लागै छै।
रही-रही हमडै़ छै
रही-रही घुमड़ै छै।
ठप-ठप-ठप चूयै छै
आँखी सें लोर
नाविक रोॅ नैया मझधार लागै छै।
तोरा बिना विरथा संसार लागै छै।
पल-क्षण भी चैन नैं
नींद वाला रैन नैं।
भिनसर चिरैयों केॅ
नीकेॅ लागै बैन नैं।
पैरोॅ सें खसकल आधार लागै छै।
तोरा बिना विरथा संसार लागै छै।
पीड़ा रोॅ अंत नैं
पतझड़ बसंत नैं।
तोरोॅ प्रिय संग नैं
छोड़ै अनंग नैं।
कलेजा में चुभलोॅ कटार लागै छै।
तोरा बिना विरथा संसार लागै छै।
जीवन केॅ नैया बिना पतवार लागै छै।
तोरा बिना....।
27/06/15 भिनसर- चार-दस बजे