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विरद श्याम प्यारे निभाते नहीं क्यों / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा
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विरद श्याम प्यारे निभाते नहीं क्यों ?
पुकारें स्वजन किन्तु आते नहीं क्यों ?
बढ़ाते रहे चीर हो द्रौपदी की
यहाँ रोज़ ही नारियाँ लुट रही हैं।
बिना लाज के मारते भ्रूण - कन्या
बिना बात गायें यहाँ कट रही हैं।
तुम्हें गाय बछड़े हमेशा से प्यारे
उन्हें मौत से आ बचाते नहीं क्यों ?
बढ़ा जा रहा पाप का राज फिर भी,
सुरक्षित नहीं सत्य है आज फिर भी।
सदा निर्बलों को सताया है जाता -
न आती मिटा कर उन्हें लाज फिर भी।
गरुण छोड़ धाये बचाने को जग को
विपद आज उनकी मिटाते नहीं क्यों ?
लगी है अदालत यहाँ भक्त जन की,
उमड़ बह चलीं भावनाएँ हैं मन की।
सभी दोष हैं पूछते निज कन्हैया,
रहें कब तलक झेलते पीर तन की ?
बदल तुम गये या है बदला ज़माना
यही तथ्य आकर बताते नहीं क्यों ?