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विरसे में निकलेगा प्रेम / सरोज सिंह

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अजनबी ज़ुबानो में खुदे
  सिक्के और मोहरें
आहन, मिटटी के बर्तन टूटे-फूटे
देवी-देवताओं की खंडित प्रतिमाएं
मिटटी में पोशीदा ज़ेवर
कुंद हथियार
पक्के स्नानागार
क्या बस यही विरसा है हमारा?
सोचती हूँ
जाने से पहले
मिटटी में गाड़ जाऊँ.
सहेजा...संजोया
"प्रेम "