भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विरही की विरह वेदनाएँ सुनकर भी भूल जाते हो / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

विरही की विरह वेदनाएँ सुनकर भी भूल जाते हो,
दो-चार पलों के जीवन को पल-पल पर क्यों तड़पाते हो?
सीखा है तीर चलाना तो कुछ औषध करना भी सीख लो,
यदि घाव नहीं भर सकते तो क्यों चितवन चोट चलाते हो?
पहले ही सोच समझ लेते मैं भला बुरा हूँ कैसा हूँ,
जब बाँह पकड़ ही ली तो फिर क्यों ब्रजराज लजाते हो?
विरहानल में जल जाना भी मेरा तुमको स्वीकार नहीं,
जब जलने लग जाता हूँ तो छिपकर छवि दिखलाते हो।
हमसे भी अधिक मिलेगी पर ऐसी न मिलेगी प्राणेश्वर,
‘बिन्दु’ दृग मोतियों की माला क्यों पैरों से ठुकराते हो?