भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विरह काल में / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
बूढ़़ा बूढ़ी भाग्यवान वू
जिनखा नित सम्मान छै
बच्चा बुतरूँ मन बहलाबै
मुख में सीता राम छै।
एकाकी जीवन काटै में
हुनखा बहुत आराम छै।
पुत्रवधु जिनखा सेवा में
सुबह, दूपहर, साम छै।
जिनखॅ बेटा श्रवण कुमार छै,
वू ते भाग्य सिकन्दर छै।
रात-दिन सेवा में लगालॅ
सुख रोॅ खान-समुनदर छै।
बाँकी केॅ कुछ हाल न पूछॅ,
जीना मरना एक समान।
खाना पीना भाग्य भरोसे
जल्दी लेॅ जा हे भगवान।
24/12/15 अपराहन 3.15 गुरूवार