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विरह के पहले दिन जो वेणी चुटीले के बिना / कालिदास
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आद्ये बद्धा विरहदिवसे या शिखा दाम हित्वा
शापस्यान्ते विगलितशुचा तां मयोंद्वेष्टनीयाम्।।
स्पर्शक्लिष्टामयमितनखेनासकृत्सारयन्तीं
गण्डाभोगात्कठिनविषमामेकवेणीं करेण।।
विरह के पहले दिन जो वेणी चुटीलने के
बिना मैं बाँध आया था और शाप के अन्त
में शोकरहित होने पर मैं ही जिसे जाकर
खोलूँगा, उस खुरखुरी, बेडौल और एक में
लिपटी हुई चोटी को, जो छूने मात्र से पीड़ा
पहुँचाती होगी, वह अपने कोमल गंडस्थल
के पास लम्बे नखोंवाला हाथ ले जाकर बार-
बार हटाती हुई दिखाई पड़ेगी।