विरह गीत / धीरज पंडित
चिट्ठी केॅ पढ़ी केॅ चिट्ठी लिखियोॅ
कि तोरा मन मेॅ छौ हमरा कहियोॅ।
कैन्हेॅ नाय तोंय दै छी जबाबा गोरिये
तोरॉे याद मेॅ रहै छी बेहाल गोरिये।
गामोॅ में रहै छेलोॅ जखनी हम्मेॅ
तोरा पियिे छेलोॅ तखनी हम्मेॅ।
जेहिया सेॅ हम्मेॅ विदेश आवी गेलोॅ
चिट्ठी लिखैतै ई हम्मे थक्की गेलोॅ
मिलला सेॅ होय गेलै साल गोरिये
तोरो यादो मेॅ रहै छी बेहाल गोरिये।
जानै नय पारोॅ हाल अपनोॅ गाँव केॅ
अमुआँ के गाछ तर बितैलोॅ धूप छाँव केॅ।
छम-छम पायल बाजै जे तोरोॅ पाँव केॅ
खेललोॅ जे आँख-मिचौली अपनोॅ दाँव केॅ।
करी याद ऐसनोॅ कमाल गोरिये
तोरोॅ याद मेॅ रहै छी बेहाल गोरिये।
जोॅ तोॅय हमरा सेॅ बनबो रूसनियाँ
काटवै कैसोॅ ई भरलोॅ जवानियाँ।
ऐतना नय आपनोॅ कसाय तोंय बुझोॅ
होय छै कि एकरोॅ बाद तोंय समझोॅ।
करभोॅ तोंय पाछू मलाल गोरिये
तोरोॅ यादो मेॅ रहै छी बेहाल गोरिये।