भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विरह मंथित उर का आमोद / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विरह मंथित उर का आमोद
मधुर मदिरामृत पान,
शून्य जीवन का मात्र प्रमोद
सुरा, साक़ी, प्रिय गान!

प्रणय रस भरा हृदय का जाम,
विरह व्याकुल चिर प्राण,
उमर को रे किससे क्या काम
सुरा में कर, मन, स्नान!