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विराम - पूर्व : 1 / महेन्द्र भटनागर

स्मृतियाँ फ़ूल हैं !

रंग-बिरंगे
खिलखिलाते फूल हैं !

स्मृतियाँ
जागती हैं जब
लगता है कि मानों
सज गये हर द्वार बंदनवार
चारों ओर !
जीवन महकता है
सुगन्धों से,
जीवन छलकता है
मधुर मादन रसों से,
जीवन जगमगाता है
चटक नवजात रंगों से !
आदमी
ऐसे क्षणों में डूब जाता
स्वप्न के मधु लोक में
सुध-बुध भूल !

दीखता सर्वत्र
अनुकूल-ही-अनुकूल,
जैसे डालियों पर
झूलते हों फूल !

झूमते हों
प्रिय अनुभूतियों के फूल !