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विरासत / अरविन्द श्रीवास्तव
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					अर्सा गुज़र गया
ज़मींदोज़ हो गये ज़मींदार साहब
बहरहाल सब्ज़ी बेच रही है 
साहब की एक माशूका
उसके हिस्से 
स्मृतियों को छोड 
कोई दूसरा दस्तावेज़ नहीं है
फिलवक़्त, साहबज़ादों की निग़ाहें
उनके दाँतों पर टिकी है
जिनके एक दाँत में
सोना मढ़ा है।
 
	
	

