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विरासत / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
तुम स्त्री हो सिर्फ
सृजनधर्मा
और हो जाती हो
किसी की माँ , बहन और बेटी
नहीं हो निर्बल
न ही असहाय
नहीं तुम कुंठित
न ही अयोग्य
तुम नहीं अपराधी
तुम विराट सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति
सही दीठ की रखवाली
तुम धर्म और कर्म हो
तुम मंदिर और ध्वज हो
सहिष्णु और धैर्यवान हो तुम
तुम नदी और तालाब हो
हो तुम पृथ्वी और आकाश
नहीं जला सकती तुम्हें अग्नि
नहीं मिटा सकती यह अपराधी दुनिया
तुम विरासत हो दुनिया की
सूर्य और चन्द्रमा की
विरासत हो तुम आकाश की
तुम........