भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विरोधियों के बीच / मोहन साहिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे आश्वस्त करने की तमाम कोशिशें
विफल हो गईं उनकी
और मैंने की साँस घुटने की शिकायत
कि हा मेरे इर्द-गिर्द मुआफिक नहीं
पक्ष नहीं लिया मैंने किसी का
निराश हैं सब मुझसे

दरअसल मैं उड़ान के खिलाफ नहीं था
मगर उस ऊँचाई तक
लौट सकूँ जहाँ से
देख पाऊं खेत और गाँव
निहार सकूँ फूटती कोंपलें

वे निकलना चाहते थे
अनन्त की यात्रा पर
सीमाओं को तोड़
नया खोजने के तर्क का सहारा लिए
मसलन जमीन बाँवड़ी और माँ से वत्सल
बच्चों से अधिक मनोरंजक
पेड़ की छाँव से शीतल
हरी चरागाहों से मुलायम
नहीं रखना चाहते थे वे
विरासत से संबंध
मेरे और उनके बीच के विवाद का
सबसे विकट पहलू तो यह था कि
वे आदमी कहलाना नहीं चाहते थे
जबकि मैं उनके इस रवैये के
सख़्त ख़िलाफ हूं।