विलंबित कइक युग मे निबद्ध / पंकज पराशर
एतय जमीन के अंत भऽ गेल अछि
आ अनन्त जलराशिक फेनिल उर्मि-यात्रा मे
संग भऽ गेल छथि
अस्ताचलगामी सूर्य हमरा मोनक आकाश मे झमारल
कमला मे, कोशी मे, बागमती आ गंडक मे
कोनो माघ कोनो कातिकक पूर्णिमा आ संक्राति मे
स्नान-दान, कल्पवास कयनिहार स्वर्गाकांक्षी हमर पूर्वज सबहक
देहगंधी जल आइ कतय, कोन अवस्था मे अछि समुद्र?
हुनका लोकनिक अस्थि-पुष्प
अहाँक कोन कोष मे अछि
ओ करुण प्रार्थना सब?
आ ओ आकुल हाक सब कोन तरंग मे निबद्ध अछि हवा?
युद्ध मे हत मनुक्ख आ अश्व-गज केर प्राणांतक स्वर
जे तलवारक टंकार मे मिज्झर होइत
कालक प्रवाह बदलैत छल
दल-मलित गाम सबहक नोरक टघार
जहिया नदीक धार बनल
तँ कतेक बढ़ल छल अहाँक अश्रुगंधी नोनक भंडार
आ हाहाकारी आवाज?
अशेष जलराशि सँ पूरित पृथ्वीक
आन-आन भाग मे बसल लोक सँ
परिचयक लेल कोलंबसी सफलता सँ पूर्व
जे नाविक सब समा गेलाह अहाँक विशाल उदर मे
तिनका सबहक असफल यात्राक कलपल स्वर आइ
कोन अवस्था मे बाँचल अछि समुद्र?
विश्व-विजय के निमित्त अश्वमेधक सरंजाम जुटबैत
मनुष्यक निश्चित मृत्युक लेल हथियारी पुष्टि-मार्गक निर्माता
सिकंदरी आकांक्षा केँ सभ्यताक संघर्ष मे निबद्ध क’ रहल अछि
कहियो ईश्वर के मृत्युक जे लोकनि कयनेँ छलाह घोषणा
आइ इतिहासक अंत के कऽ रहल छथि पुष्टि
पुष्टि-मार्गक अंतवादी उत्तर-आधुनिक सिकंदर सबहक नेना
अश्वमेधी वांछाक लेल निट्ठाह नरमेधी अभियान केँ
नाम देलक अछि-ईश्वरीय आदेशक पालन
प्रलय कालक इतिहास पुरुष समुद्र हमरा कहू
कतेक बर्ख सँ कतेक सभ्यता कतेक संस्कृति
आ कतेक साम्राज्यक प्रत्यक्ष गवाह अहाँ
कतेक रास सिकन्दर सबहक देखनेँ छी इतिहास!
मनुक्खक प्राण लैत मनुक्ख
सभ्य बनैत नगर बसबैत
सिकन्दर बनैत बनबैत रहल अछि पृथ्वी पर इतिहासक अन्हार-घर
जतय कलपैत स्त्रीगणक नोरक टघार अहाँ केँ घीचैत रहल
कलिंग सँ तुगलक आ नादिरशाही धरि
रक्त -रंजित सभ्यताक नोनछाह समुद्र
हमरा इतिहासक कारागार सँ क्यो
निरन्तर हाक दऽ रहल अछि
इतिहासक कतेक रास हाक
अहाँक हृदय मे हाहाकार बनल
बेटाक लहास पर खसैत माय
पतिक लहास पर खसैत सैनिक सबहक स्त्रीक वेदना समाहित कएनेँ
अहाँ खसैत आबि रहल छी लहरि बनि कऽ
कइक सदी सँ कटल गाछ जकाँ
कइक शताब्दी सँ हमरा क्यो हाक दऽ रहल अछि
अत्यंत आकुल स्वर मे बेर-बेर क्यो हमरा
सोर कऽ रहल अछि कहबाक लेल मोनक व्यथा
मुद्रा आ मोंछक कारण सँ मेटायल अनेक इतिहासक कथा
हमरा कहबाक लेल कतेक दिन सँ
कतेक रास हाक हमरा सोर कऽ रहल अछि
साक्षी छथि आइ अस्ताचलगामी सूर्य आ स्वयं अहाँ समुद्र
हम आइ सुनि रहल छी कइक सदीक सबटा हाक
सभ्यताक सबटा मर्मांतक पुकार