भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विलम्बित स्वीकृति / नजवान दरविश / राजेश चन्द्र
Kavita Kosh से
मैं पत्थर था
जिसे निर्माणकर्ता प्राय: नकारते आए
पर जब वे आए,
थकान और ग्लानि से लथपथ होकर
विध्वंस के बाद
और कहा, ’तुम ही थे नींव के पत्थर’
तब कुछ बचा ही नहीं था निर्माण के लिए
उनका तिरस्कार कहीं अधिक सहनीय था
उनकी इस विलम्बित स्वीकृति से
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र