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विलोम रति / सांवर दइया
Kavita Kosh से
खन से आ गिरीं
कलाई में चूडियां
और हाथों में थे
निश्चय ही श्रीफल
एक अधोमुखी कमल
कमल-नाल पर खुलता गया
आहिस्ता-आहिस्ता
पंखुडियों का सिकुडना
आहिस्ता-आहिस्ता
फिर खुलना
आहिस्ता-आहिस्ता
पराग का झरना
आहिस्ता-आहिस्ता
गुत्थमगुत्था सांसों के बीच
खिलखिला रही थी सुगंध !