भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विवशता / अरविन्द श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह धीरे से सरका
क़रीब आया
हल्की मुस्कान के साथ
दबी किन्तु सख़्त जुबान मे बोला-
'स्मैक लोगे?'

मै कहता नहीं
तो भी मुझे लेना पड़ता ।