भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विवश / उदय भान मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता का
कोई समय
नहीं होता
जैसे मन
या
नींद का!

धूप की
धुंधली दोस्ती
काम नहीं आती
अगर अंधेरा
अमावस का हो
और गुजरना
किसी जंगल से हो
दोस्तों की
पुरानी पहचान
जेब में पड़ी
सिकुड़ी रूमाल की तरह
पसीना पोंछने के
काम
तो आ सकती है।
मगर छतरी का
काम नहीं कर सकती
अजनबी शबर की
ठसा-ठस भरी
बस में
खड़े-खड़े सफर
करने की लाचारी
में
कोई बदलाव
नहीं कर सकती।