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विवाह गीत / 18 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

छाबो भरि पापड़ अलग मेकसे।
याहिणी वो लांगड़ चाई गुई।
भाट्यो भरि दारुड़ो अलग मेकसे
याहिणी वो लांगड़ पी गुई।
छाबो भरि खार्या अलग मेकसे।
याहिणी वो लांगड़ खाई गुई।

- समधन के लिए वधू पक्ष की स्त्रियाँ कह रही हैं- हमारी समधन बहुत दुखी और पेटू है। समधन के सामने हमने बहुत से पापड़ रखे, वो सभी खा गई, पूरी दारू पी गई और सेंव भी खा गई, ये कैसी समधन है?