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विशद पीड़ा / दरवेश भारती
Kavita Kosh से
झंझावात विशद पीड़ा का उठता है जब,
होता है आभास हृदय फट जायेगा।
एक मधु मुस्कान पाकर;
आयु-भर आँसू बहाये,
तिलमिलाये, सकपकाये।
एक मधुमय गीत गाकर,
शैल विपदा के उठाये॥
वीणा-तारों से स्वर कभी उभरता है जब।
होता है आभास हृदय फट जायेगा॥
स्वप्न थे कितने सजाये;
नेह-आशा में हृदयवर!
किन्तु मेरे प्राण-मधुकर,
पान रस का कर न पाये,
रह गया जीवन बिखरकर॥
असफल चाहों का अरमान सिसकता है जब।
होता है आभास हृदय फट जायेगा॥