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विशाल गगन / मधुछन्दा चक्रवर्ती

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विशाल गगन
लिए मेघों का धन
मन्द पवन भी
संग चली आती है

अतृप्त नयन
में बसी आशा घन
शीतल पवन
छूने को
व्याकुल हुआ मन
हो गया चंचल
तुम संग
उस क्षण को
फिर से
जीने के लिए

आनन्द विभोर
होकर
शरद की शरण में
प्रेम से ऋतु-राग
गाने के लिए।