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विशाल जीवन / अज्ञेय

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है यदि तेरा हृदय विशाल, विराट् प्रणय का इच्छुक क्यों?
है यदि प्रणय अतल, तो अपनी अतल-पूर्ति का भिक्षुक क्यों?
दावानल की काल-ज्वाल जलती-बुझती एकाकी ही-
जीवन हो यदि ऊँचा तो ऊँची समाधि हो रक्षक क्यों?

मुलतान जेल, 5 दिसम्बर, 1933