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विशाल भारत / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

विधि-कांत-कर-सँवारा,
संसार का सहारा,
जय-जय विशाल भारत,
भुवनाभिराम प्यारा।
वर-वेद-गान-मुखरित,
उन्नत, उदार, सुचरित,
बहु पूत भूत पूजित
अनुभूत मंत्र द्वारा।
सुर-सिध्द-वृंद-वंदित,
नंदन-वनाभिनंदित,
आनंद-मान्य-मंदिर,
सिंधुर-वदन सुधारा।
जल-निधि-सुता-सुलालित,
सुरसरि-सुवारि-पालित,
जग-वंदिनी-गिरा-गृह,
गिरिनंदिनी उबारा।
रवि-कर-निकर-मनोहर,
विधु-कांति-कल-कलेवर,
सब दिव्यता-निकेतन,
दिवलोक का दुलारा।
मानस-सलिल-मनोरम,
मंजुल-मृदुल, मधु रतम,
कंचन-अचल-अलंकृत,
भव-व्योम-भव्य-तारा।
सुंदर-विचार-सहचर,
सब रस परम रुचिर सर,
शुचि-रुचि-निकेत-केतन,
वर भाव कर उभारा।
सज्जन-समाज-पालक,
दुर्जन-समूह-घालक,
निर्बल-प्रबल-सहायक,
खल-दल-दलन-दुधारा।
सारी सुनीति-नायक,
जन-मुक्ति-गान-गायक,
सब सिध्दि चारु साधान,
सुख-साधा-सिध्द पारा।
नव-नव-विकास-विकसित,
मधु-ऋतु-विभूति-विलसित,
मलयज-समीर-सेवित,
सिंचित-पियूष-धारा।
कुवलय-कलित सितासित,
खग-कुल-कलोल-पुलकित,
सज्जित वसुंधारा का
सौंदर्य-साज सारा।
कमनीयता-निमज्जित,
मणि-मंजु-रत्न-रंजित,
अवनी-ललाट-अंकित
सिंदूर-विंदु-न्यारा।