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कामरी कारी कँधा पर देखि अहीरहिँ बोलि सबै ठहरायो / अज्ञात कवि (रीतिकाल)
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कामरी कारी कँधा पर देखि अहीरहिँ बोलि सबै ठहरायो ।
जोई है सोई है मेरो तो जीव है याको मैँ पाय सभी कुछ पायो ।
कामरी लीन्होँ उढ़ाय तुरँतहि कामरी मेरो कियो मन भायो ।
कामरी तो मोहि जारो हुतो बरु कामरी वारे बिचारे बचायो ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।