भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} :::यह जीवन औ' संसार अधूरा इतना …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}


:::यह जीवन औ' संसार अधूरा इतना है।

:::कुछ बे तोड़े कुछ जोड़ नहीं सकता कोई।


तुम जिस लतिका पर फूली हो, क्‍यों लगता है,

तुम उसपर आज पराई हो?

मैं ऐसा अपने-ताने बाने के अंदर

जैसे कोई बलबाई हो।

:::तुम टूटोगी तो लतिका का दिल टूटेगा,

:::मैं निकलूँगा तो चादर चिरबत्‍ती िहोगी।

:::यह जीवन औ' संसार अधूरा इतना है।

:::कुछ बे तोड़े कुछ जोड़ नहीं सकता कोई।


पर इष्‍ट जिसे तुमने माना, मैंने माना,

माला उसको पहनानी है,

जिसको खोजा, उसकी पूजा कर लेने में

हो जाती पूर्ण कहानी है;

::तुमको लतिका का मोह सताता है, सच है,

::आता है मुझको बड़ा रहम इस चादर पर;

:::निर्माल्‍य देवता का व्रत लेकर

:::हम दोनों में से तोड़ नहीं सकता कोई।

:::यह जीवन औ' संसार अधूरा इतना है।

:::कुछ बे तोड़े कुछ जोड़ नहीं सकता कोई।


हर पूजा कुछ बलिदान सदा माँगा करती,

लतिका का मोह मिटाना है;

हर पूजा कुछ विद्रोह सदा कुछ चाहा करती,

इस चादर को फट जाना है।

::माला गूँथी, देवता खड़े हैं, पहनाएँ;

::उनके अधरों पर हास, नयन में आँसू हैं।

:::आरती देवता की मुसकानों की लेकर

:::यह अर्ध्‍य दृगों को छोड़ नहीं सकता ककोई।

:::यह जीवन औ' संसार अधूरा इतना है।

:::कुछ बे तोड़े कुछ जोड़ नहीं सकता कोई।


तुमने किसको छोड़ा? सच्‍चाई तो यह है,

कुछ अपनापन ही छूट गया।

मैंने किसको तोड़ा? सच्‍चाई तो यह है,

कुछ भीतर-भीतर टूट गया।

::कुछ छोड़ हमें भी पाएँगे, कुछ तोड़ हमें

::भी जाएँगे, जब बनने को वे सोचेंगे,

:::पर हमसे वे छूटेंगे, वे टूटेंगे;

:::जग-जीवन की गति मोड़ नहीं सकता कोई।

:::यह जीवन औ' संसार अधूरा इतना है।

:::कुछ बे तोड़े कुछ जोड़ नहीं सकता कोई।
195
edits