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सर ये फोड़िए / जॉन एलिया

277 bytes added, 04:30, 12 दिसम्बर 2010
सर येह फोड़िए अब नदामत में
नीन्द आने लगी है फुरकत में
 
हैं दलीलें तेरे खिलाफ मगर
सोचता हूँ तेरी हिमायत में
 
इश्क को दरम्यान ना लाओ के मैं
चीखता हूँ बदन की उसरत में
 
ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम
रूठते अब भी है मुर्रबत में
 
वो जो तामीर होने वाली थी
लग गई आग उस इमारत में
वो खला है कि सोचता हूँ मैं
उससे क्या गुफ्तगू हो खलबत में
 
ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मुहब्बत में
मेरे कमरे का क्या बया कि यहाँ
अब फकत आदतो की वर्जिश है
रूह शामिल नहीं शिकायत में
 
ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम
रूठते अब भी है मुर्रबत में
 
वो जो तामीर होने वाली थी
लग गई आग उस इमारत में
ऐ खुदा जो कही नहीं मौज़ूद
क्या लिखा है हमारी किस्मत में
 
ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मुहब्बत में
 
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