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{{KKRachna
|रचनाकार=नागार्जुन
|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
105 साल की उम्र होगी उसकी
जाने किस दुर्घटना में
आधी-आधी कटी थीं बाँहें
झुर्रियों भरा गन्दुमी सूरत का चेहरा
धँसी-धँसी आँखें...
राजघाट पर गाँधी समाधि के बाहर
वह सबेरे-सबेरे नज़र आती है
जाने कब किसने उसे एक मृगछाला दिया था
मृगछाला के रोएँ लगभग उड़ चुके हैं
मुलायम-चिकनी मृगछाला के उसी अद्धे पर
वो पीठ के सहारे लेटी
सामने अलमुनियम का भिक्षा पात्र है
नए सिक्कों और इकटकही-दुटकही नए नोटों से
करीब-करीब आधा भर चुका है वो पात्र
अभी-अभी एक तरूण शान्ति-सैनिक आएगा
अपनी सर्वोदयी थैली में भिक्षापात्र की रकम डालेगा
झुक के बुढ़िया के कान में कुछ कहेगा
आहिस्ते-आहिस्ते वापस लौट जाएगा
थोड़ी देर बाद
शान्ति सेना की एक छोकरी आएगी
शीशे के लम्बे गिलास में मौसम्बी का जूस लिए
बुढ़िया धीरे-धीरे गिलास खाली कर डालेगी
पीठ और गर्दन में
हरियाणवी तरुणी के सुस्पष्ट हाथ का सहारा पाकर
बुदबुदाएगी फुसफुसी आवाज में - जियो बेटा
बुढ़िया का जीर्ण-शीर्ण कलेवर
हासिल करेगा ताज़गी
यह अहिंसा है
इमर्जेन्सी में भी
मौसम्बी के तीन गिलास जूस मिलते हैं
नित्य-नियमित, ठीक वक्त पर
दुपहर की धूप में वह छाँह के तले पहुँचा दी जाएगी
बारिश में तम्बू तान जाएँगे मिलिटरी वाले
हिंसा की छत्र-छाया में
सुरक्षित है अहिंसा...
गीता और धम्मपद और संतवाणी के पद
इस बुढ़िया के लिए भर लिए गए हैं रिकार्ड में
यह निष्ठापूर्वक रोज सुबह-शाम
सुनती है रामधुन, सुनती है पद
'आपातकालीन संकट' को
इस बुढ़िया की आशीष प्राप्त है
1975 में रचित
</poem>
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|रचनाकार=नागार्जुन
|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
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105 साल की उम्र होगी उसकी
जाने किस दुर्घटना में
आधी-आधी कटी थीं बाँहें
झुर्रियों भरा गन्दुमी सूरत का चेहरा
धँसी-धँसी आँखें...
राजघाट पर गाँधी समाधि के बाहर
वह सबेरे-सबेरे नज़र आती है
जाने कब किसने उसे एक मृगछाला दिया था
मृगछाला के रोएँ लगभग उड़ चुके हैं
मुलायम-चिकनी मृगछाला के उसी अद्धे पर
वो पीठ के सहारे लेटी
सामने अलमुनियम का भिक्षा पात्र है
नए सिक्कों और इकटकही-दुटकही नए नोटों से
करीब-करीब आधा भर चुका है वो पात्र
अभी-अभी एक तरूण शान्ति-सैनिक आएगा
अपनी सर्वोदयी थैली में भिक्षापात्र की रकम डालेगा
झुक के बुढ़िया के कान में कुछ कहेगा
आहिस्ते-आहिस्ते वापस लौट जाएगा
थोड़ी देर बाद
शान्ति सेना की एक छोकरी आएगी
शीशे के लम्बे गिलास में मौसम्बी का जूस लिए
बुढ़िया धीरे-धीरे गिलास खाली कर डालेगी
पीठ और गर्दन में
हरियाणवी तरुणी के सुस्पष्ट हाथ का सहारा पाकर
बुदबुदाएगी फुसफुसी आवाज में - जियो बेटा
बुढ़िया का जीर्ण-शीर्ण कलेवर
हासिल करेगा ताज़गी
यह अहिंसा है
इमर्जेन्सी में भी
मौसम्बी के तीन गिलास जूस मिलते हैं
नित्य-नियमित, ठीक वक्त पर
दुपहर की धूप में वह छाँह के तले पहुँचा दी जाएगी
बारिश में तम्बू तान जाएँगे मिलिटरी वाले
हिंसा की छत्र-छाया में
सुरक्षित है अहिंसा...
गीता और धम्मपद और संतवाणी के पद
इस बुढ़िया के लिए भर लिए गए हैं रिकार्ड में
यह निष्ठापूर्वक रोज सुबह-शाम
सुनती है रामधुन, सुनती है पद
'आपातकालीन संकट' को
इस बुढ़िया की आशीष प्राप्त है
1975 में रचित
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