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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=प्रदीप मिश्र|संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem> ''' स्कूटर चलाती हुई लड़कियाँ'''
स्कूटर चलाती हुई लड़कियाँ
जब फर्राटे भरती हुई
लगता है जैसे
एक झोंका गुजर गुज़र गया हो
मोंगरे की सुगन्ध से गमकता
स्कूटर चलानेवाली लड़कियाँ
पसन्द नहीं करतीं है हैं किसी से पिछड़ना
वे सबको पीछे छोड़ती हुई
बहुत आगे निकल जातीं जाना चाहतीं हैंइतना आगे कि पीछे मुड़कर मुडकर देखने परसिर्फ उनकी गति दिखाई देती हैदे
सबको पीछे छोड़नेवाली इन लड़कियों को
किस मोड़ से
कितनी गति से मुड़ना चाहिए
कब इतना चरमरा कर
ब्रेक लगाना चाहिए कि
स्कूटर के साथ-साथ
समय भी ठहर जाए
समय को लगाम की तरह पकड़ी हुई
इन लड़कियों को देखना
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