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Kavita Kosh से
ज़ीस्त उम्मीद के साए में ही पलती रहती
फ़र्ज़ दुनिया के निभाने में गुज़र जाए जाते दिन
और हर रात तेरी याद मचलती रहती
पाँव फैलाए अँधेरा है हर इक कोने घरों में, फिर भी ज्योति शम्म: हालाँकि हर इक बाम पे जलती रहती
शांत दिखता है समुन्दर भी लिए गहराई
जब के कि नदिया की लहर खूब उछलती रहती
तू अगर होती खिलौना तो बहुत बेहतर था