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आज हर सम्त भागते हैं लोग
गोया चौराहा हो गये हैं लोग
अपनी पहचान भीड़ में खो कर
खुद को कमरों में ढूंढते है ढूँढते हैं लोग
बंद रह रह के अपने कमरों में
टेबिलों पर खुले -खुले है हैं लोग
ले के बारूद का बदन यारो !
आग लेने निकल पड़े है लोग हर तरफ इक धुआं सा उठता हैआज कितने बुझे बुझे है हैं लोग
रास्ते किस के पाँव से उलझें
खूँटियों पर टँगे हुए हैं लोग
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