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जब कोई ओट भी न रहे और हवा चले कितना है दम चराग़ में, तब ही कुछ तो पता चलेफानूस की न आस हो , उस पर हवा चले
लेता हैं इम्तिहान अगरतुझसे मिला था जो कभी, सब्र दे मुझेतुझको ही सौंप दूँकब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा दर पर तेरे इसी लिए आँसू गिरा चले
नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है
अब कौन लेके झंडा –एपरचम-ए- अमनो-वफ़ा चले
चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का फिर ज़िंदगी में सिर्फ सज़ा ही सिल सिला सज़ा चले  खंजर लिये खड़े हों अगर मीत हाथ मेंकोई हमें बताए वहाँ क्या दुआ चले जब ख़्वाब रूठ कर गए, 'श्रद्धा' ने ये कहाअब गुफ़्तगू के दौर चले, रतजगा चले
खंजर लिये खड़ें हों अगर मीत हाथ में
“श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ फ़िर क्या दुआ चले
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