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06:07, 16 दिसम्बर 2010
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चाँद को देखो चकोरी के नयन से
:माप चाहे जो धरा की हो गगन से।
: मेघ के हर ताल पर:: नव नृत्य करता: राग जो मल्हार: अम्बर में उमड़ता
आ रहा इंगित मयूरी के चरण से
:चाँद को देखो चकोरी के नयन से।
: दाह कितनी:: दीप के वरदान में है:: आह कितनी: प्रेम के अभिमान में है
पूछ लो सुकुमार शलभों की जलन से
:चाँद को देखो चकोरी के नयन से।
: लाभ अपना:: वासना पहचानती है: किन्तु मिटना: प्रीति केवल जानती है
माँग ला रे अमृत जीवन का मरण से
:चाँद को देखो चकोरी के नयन से:माप चाहे जो धरा की हो गगन से।
</poem>
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