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जीवन का झरना / आरसी प्रसाद सिंह

1,485 bytes added, 06:12, 16 दिसम्बर 2010
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यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है सुख -दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है कब फूटा गिरि के अंतर से ? किस अंचल से उतरा नीचे ? किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे ?  निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है ! धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है ।  बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता, बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता ।  लहरें उठती हैं, गिरती हैं; नाविक तट पर पछताता है । तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है ।  निर्झर कहता है, बढ़े चलो ! देखो मत पीछे मुड़ कर ! यौवन कहता है, बढ़े चलो ! सोचो मत होगा क्या चल कर ?  चलना है, केवल चलना है ! जीवन चलता ही रहता है ! रुक जाना है मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है !
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