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बिहान / लाला जगदलपुरी

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दखा, पाहली बिहान
बेडा जायसे किसान
कुकडा बासली गुलाय
हाक देयसे उजेंर
आँधार हाजली गुलाय
तारा मन चो होली हान
दखा, पाहली बिहान

मछरी, केंचवाँ चाबुन जाय
कोकडा मछरी गीलुन खाय
ढोंडेया धरे मेंडकी के
सोनू दादा जाल पकाय
कोएँर-कोएंर होते खान
दखा, पाहाली बिहान

दसना छूटली पनाय
मिरली मारग मन के पाँय
लेकी गेली पानी घाट
पानी लहरी मारुन जाय
हाजुन गेली रात-मसान
दखा, पाहाली बिहान

[लाला जगदलपुरी की हलबी कविता "बिहान" का हिन्दी अनुवाद] –

देखो, सबेरा हो गया है
किसान, खेत जा रहा है
सब तरफ मुर्गे बोले
सब तरफ ढेकियाँ बजीं
उजेला पुकार रहा है
अंधेरा सब तरफ खो गया है
सितारों की हानि हुई है
देखो, सुबह हुई

मछली, केंचुआ चबा रही है
बगुला, मछली निगल रहा है
ढोंढिया-साँप, मेंडकी पकड रहा है
सोनू दादा जाल फेंक रहा है
चिडियों के चहकते ही
देखो, सबेरा हो गया

बिस्तर कब का छूट गया
रास्तों को पाँव मिल गये
लडकी पनघट चली गयी
पानी में लहरें उठ रही हैं
चुडैल रात नहीं रही
देखो, सुबह हो गयी
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