भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
माज़ूर हूँ जो पाओं मेरे मेरा बेतरह पड़े<br>
तुम सर-गराँ तो मुझ से न हो मैं नशे में हूँ<br><br>
या हाथों हाथ दो लो मुझे मानिंद-ए-जाम-ए-मय<br>
या थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ
मस्ती से दरहमी है मेरी गुफ्तगू के बीच<br>
जो चाहो तुम भी मुझको को कहो में नशे में हूँ
नाजुक मिजाज आप क़यामत है मीर जी <br>
ज्यों शीशा मेरे मुंह न लगो में नशे में हूँ