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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार अनिल|संग्रह=और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल}}{{KKCatGhazal}}<poemPoem>
व्यक्ति का आचरण विषैला है
सारा वातावरण विषैला है
आज पर्यावरण विषैला है
रात पहुंचेगी पहुँचेगी भोर तक कैसे
जबकि पहला चरण विषैला है
हर नया संस्करण विषैला है
अब न रस है, न छंद है, लय हैगीत का व्याकरण विषैला है</poem>