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Kavita Kosh से
रहे बेखबर मेरे यार तक, कभी इस पे शक, कभी उस पे शक<br>
मेरे जी को जिसकी रही ललक, वो कमर जबीं कोई और है<br><br>
ये जो चार दिन के नदीं नदीम हैं इन्हे क्या ’फ़राज़’ कोई कहे<br>
वो मोहब्बतें, वो शिकायतें, मुझे जिससे थी, वो कोई और है.<br><br>
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