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सरसर<ref>रेगिस्तान की गर्म हवा</ref> लगे सबा<ref>ठंडी हवा</ref> मुझे, गर पास तू ए जाँ नहीं
कल रात पास बैठे जो, हम राज़दार हो गए कुछ राज़ अपने खुल गये
टूटा है ऐतमाद बस, ये तो कोई ज़ियाँ<ref>नुकसान</ref> नहीं
खुद की तलाश में हूँ मैं, लेकिन मेरे निशाँ नहीं
दुश्मन बना जहान क्यूँ ये, ऐसी फिज़ा बनी ही क्यूँ
मेरे तो राज़, राज़ हैं, कोई भी राज़दां नहीं
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