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|रचनाकार=कुमार अनिल
|संग्रह=और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल
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<poem>सिर्फ मेरा ही नहीं था ये शहर तेरा भी था
तूने लूटा खुद जिसे ऐ दोस्त घर तेरा भी था