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Kavita Kosh से
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आलंबन, आधार यही है, यही सहारा है
कविता मेरी जीवन शैली, जीवन धारा है
यही ओढ़ता, यही बिछाता
यही पहनता हूंहूँ
सबका है वह दर्द जिसे मैं
अपना कहता हूँ
देखो ना तन लहर-लहर
मन पारा-पारा है।
नाता मेरा धूप-छाँह से
घाटी टीलों से
मिलने ही निकला हूंहूँ
घर से पर्वत-झीलों से
बिना नाव-पतवार धार में दूर किनारा है।है ।</poem>