भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=
}}
ममता से, करुणा से, नेह से दुलार से
घाव जहां जहाँ भी देखो, सहलाओ प्यार से।से ।
नारों से भरो नहीं
भरो नहीं वादों से
अंतराल भरो सदा
गीतों -संवादों से हो जायेंगे जाएँगे पठार शर्तिया कछार से।से ।
भटके ना राहगीर
कोई अंधियारे अँधियारे में
दीये की तरह जलो
घर के गलियारे में
लड़ो आर-पार की लड़ाई अंधकार से।से ।
हाथ बनो, पैर बनो
राह बनो जंगल में
लहरों में नाव बनो
सेतु बनो दलदल में
प्यासों की प्यास हरो पानी की धार से।से ।</poem>