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|रचनाकार=कैलाश गौतम
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रस्ते में बादल
दो चार छू गए
घर बिजली के नंगे
तार छू गए।।गए ।।
आँगन से भागे दालान में गए
एक अदद मीठी मुस्कान में गए
फूलों से लदी-लदी डाल भरे हम
केवड़े कदंब
बार-बार छू गए।।गए ।।
बरखा में हरे-हरे धान की छुवन
नहले पर दहला मेहमान की छुवन
घर बैठे -
बदरी केदार छू गए।।गए ।।
</poem>