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|संग्रह=
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सब जैसा का तैसा है
सब कुछ पूछो, यह मत पूछो
आम आदमी कैसा है।है ?
क्या सचिवालय क्या न्यायालय
सबका वही रवैया है
बाबू बड़ा न भैय्या प्यारे
सबसे बड़ा रुपैया है
पब्लिक जैसे हरी फसल फ़सल है शासन भूखा भैंसा है।है ।
मंत्री के पी. ए. का नक्शा
मंत्री से भी हाई है
बिना कमीशन काम न होता
उसकी यही कमाई है
रुक जाता है, कहकर फ़ौरन
`देखो भाई ऐसा है' ।
हैं अपराधी जेलों में
खेल दिखाते मेलों में
जैसे रोज रोज़ चढ़ावा चढ़ता इन पर चढ़ता पैसा है।है ।</poem>