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{{KKRachna
| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
| संग्रह =
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जिस्मे खाक़ी में क्या बला है वो
है कोई चीज़ या हवा है वो
अजनबी है मगर मिला ऐसे
जैसे मुद्दत से जानता है वो
कौन जानेगा इश्क़ से बढ़कर
"हुस्न कहते हैं जिसको क्या है वो"
डोर आँखों में वो गुलाबी सी
जैसे चढ़ता हुआ नशा है वो
मंज़िले इश्क़ पार करने को
जान जोखिम में डालता है वो
दिल में चाहत जुबाँ पे कड़वी बात
हुस्न वालों की इक अदा है वो
बेवफ़ा कह दिया 'रक़ीब' जिसे
जान लें आप बावफ़ा है वो
</poem>
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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
| संग्रह =
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जिस्मे खाक़ी में क्या बला है वो
है कोई चीज़ या हवा है वो
अजनबी है मगर मिला ऐसे
जैसे मुद्दत से जानता है वो
कौन जानेगा इश्क़ से बढ़कर
"हुस्न कहते हैं जिसको क्या है वो"
डोर आँखों में वो गुलाबी सी
जैसे चढ़ता हुआ नशा है वो
मंज़िले इश्क़ पार करने को
जान जोखिम में डालता है वो
दिल में चाहत जुबाँ पे कड़वी बात
हुस्न वालों की इक अदा है वो
बेवफ़ा कह दिया 'रक़ीब' जिसे
जान लें आप बावफ़ा है वो
</poem>