भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatNazm}} <poem> इल्तिजा क…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
| संग्रह =
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>

इल्तिजा कर रहा हूँ मैं तुमसे यही, नंगे पाँवों गली में न आया करो
वरना चुभ जाएगा कोई काँटा कहीं, पाए नाज़ुक को अपने बचाया करो

तुम हसीनों में सबसे जुदा हो हसीं, हुस्न वाले नहाते हैं पानी से सब
नर्म नाज़ुक बदन है तुम्हारा बहुत, दूध से तुम मेरी जाँ नहाया करो

आपके घर से मंदिर नहीं दूर कुछ, मैं भी आता हूँ हर रोज़ मंदिर सनम
होगी पूजा बहाना मुलाक़ात का, मैं तुम्हें, तुम मुझे देख जाया करो

घर से सिंगार करके जो निकलो कभी, बस यही तुमसे इक इल्तिजा है मेरी
गाल पर एक तिल भी बनाया करो, जब भी नैनो में काजल लगाया करो

तुमने मुझको लिखा था जो ख़त प्यार का, जो भी उसमें लिखा था वो अच्छा लगा
यूँ न नैनो से निंदिया चुराया करो, यूँ न सपनों में आकर सताया करो

घर की अंगनाई में या के तन्हाई में, जब भी थक जाए तन और घबराए मन
बन के तितली चमन में भी आया करो, फूल की तरहा तुम मुस्कराया करो

याद करके तुझे गीत लिखता हूँ मैं, मेरा हर गीत भी है तुम्हारे लिए
चैन आ जाएगा मन बहल जाएगा, गीत मेरा लिखा गुनगुनाया करो

प्यार है तो कहो बेरुख़ी किसलिए, किस ख़ता पर मेरी है शिकायत तुम्हें
मेरी नज़रों से नज़रें मिलाया करो, शर्म से सर न अपना झुकाया करो

प्यार करता हूँ तुमसे ख़ुदा की क़सम, प्यार की राह में हैं बड़े पेचो-ख़म
तुमसे बस ये मेरी आख़िरी अर्ज़ है, जो भी वादा करो वो निभाया करो
</poem>
384
edits