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<poem>सागर चरण पखारे, गंगा शीश चढ़ावे नीर
मेरे भारत की माटी है चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ

मंगल भवन अमंगलहारी के गुण तुलसी गावे
सूरदास का श्याम रंगा मन अनत कहाँ सुख पावे
जहर का प्याला हँस कर पी गई प्रेम दीवानी मीरा
ज्यों की त्यों रख दीनी चुनरिया, कह गए दास कबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ- सौ नमन करूँ

फूटे फरे मटर की भुटिया, भुने झरे झर बेरी
मिले कलेऊ में बजरा की रोटी मठा मठेरी
बेटा माँगे गुड की डलिया, बिटिया चना चबेना
भाभी माँगे खट्टी अमिया, भैया रस की खीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ

फूटे रंग मौर के बन में, खोले बंद किवड़िया
हरी झील में छप छप तैरें मछरी सी किन्नरिया
लहर लहर में झेलम झूमे, गावे मीठी लोरी
पर्वत के पीछे नित सोहे, चंदा सा कश्मीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ- सौ नमन करूँ

चैत चाँदनी हँसे , पूस में पछुवा तन मन परसे
जेठ तपे धरती गिरजा सी, सावन अमृत बरसे
फागुन मारे रस की भर भर केसरिया पिचकारी
भीजे आंचल , तन मन भीजे, भीजे पचरंग चीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ</poem>
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