भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
-देखो न
वैसे ही आकाश को थामे खड़े हैं दयार
वैसे ही चमक र्ही रही है घराट की छत
वैसे ही बिछी हैं मक्की की पीली चादरें
और डिंगली में पूँछ हिलाते डंगर
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,667
edits