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तिन पै जेहि छिन चन्द जोति रक निसि आवति ।
जल मै मिलिकै नभ अवनी लौं तानि तनावति॥होत मुकुरमय सबै तबै उज्जल इक ओभा ।तन मन नैन जुदात देखि सुन्दर सो सोभा ॥सो को कबि जो छबि कहि , सकै ता जमुन नीर की ।मिलि अवनि और अम्बर रहत , छबि इक - सी नभ तीर की ॥२॥
परत चन्र्द प्रतिबिम्ब कहूँ जल मधि चमकायो ।
कबहुँ होत सत चन्द कबहुँ प्रगटत दुरि भाजत ।
पवन गवन बस बिम्ब रूप जल मैं बहु साजत ।।
मनु ससि भरि अनुराग जामुन जल लोटत डोलै ।
कै तरंग की डोर हिंडोरनि करत कलोलैं ।।
कै बालगुड़ी नभ में उड़ी, सोहत इत उत धावती ।
कई अवगाहत डोलात कोऊ ब्रजरमनी जल आवती ।।४।।
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